Type: अवनद्ध वाद्य
ढोल लकड़ी, पीतल, चमड़ा, कपास, चर्मपत्र, और धातु से बना एक ताल वाद्य यंत्र होता है। यह लोक वाद्य यंत्र पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, केरल, हिमाचल प्रदेश और असम में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से पारंपरिक और लोक संगीत तथा नृत्य प्रदर्शन के साथ संगत के लिए उपयोग किया जाता है। सार्वजनिक घोषणाओं में भी एक वाद्य यंत्र के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।
Material: पीतल, लकड़ी, चर्मपत्र, चमड़ा, कपास
यह लकड़ी से बना एक पीपे के आकार का द्विपृष्ठीय ढोल। इसके दोनों सिरे चर्मपत्र से ढके होते हैं और यह ढोल, दोनों सिरों पर चमड़े के कुंडों के माध्यम से चमड़े की पट्टियों द्वारा बंधा होता है। इसका दायाँ सिरा, बाएँ सिरे से छोटा होता है। विभिन्न तान और लयबद्ध बानगी के लिए इसे विभिन्न आकार की दो डंडियों द्वारा बजाया जाता है। इस ढाँचे के चारों ओर छपाई वाला सूती कपड़ा लपेटा जाता है। पश्चिम बंगाल के लोक संगीत और नृत्य में इसका उपयोग किया जाता है।
Material: लकड़ी, चर्मपत्र
लकड़ी का खोखला बेलनाकार ढाँचा जिसके मुख खाल से ढके होते हैं। बाएँ मुख पर मोटी अपरिष्कृत खाल होती है, जबकि दाएँ मुख पर ऊँचे स्वरमान के लिए पतली खाल होती है। इसे गले से लटकाकर, हाथ और छड़ी से पीटा जाता है। यह लोक नृत्यों और उत्सवों में उपयोग किया जाता है।
Material: धातु
एक डफली जैसा ढोल। त्योहारों के दौरान गायन के साथ संगत के लिए उपयोग किया जाता है, महत्वपूर्ण सार्वजनिक घोषणाएँ करते समय भी उपयोग किया जाता है।
Material: पीतल, चर्मपत्र, कपास
पीतल का पीपे के आकार का ढोल। दोनों तरफ कुंडों के माध्यम से बँधी कपास की डोरी द्वारा दोनों सिरों पर खिंची हुई चर्म होती है। रंगी हुई कपास की गांठें डोरियों में डाली जाती हैं। छड़ी और हाथ से बजाया जाता है। हिमाचली लोक और पारंपरिक संगीत तथा नृत्य अनुक्रमों में उपयोग किया जाता है।
Material: लकड़ी, चमड़ा
एक बेलनाकार ढोल जिसे लकड़ी के एकल कुंदे को खोखला करके बनाया जाता है। इसका दाहिना शीर्ष बड़ा होता है और बाएँ शीर्ष की तुलना में इसका स्वरमान ऊँचा होता है। दोनों मुख पतले चमड़े से ढके होते हैं और तबले की तरह 'गजरा’ की सहायता से बँधे होते हैं और पतली और सघन चमड़े की पट्टियों द्वारा खोल और कुंडे के दूसरे छोर पर अंतरग्रथित होते हैं। इसे क्षैतिज रूप से गले से लटकाया जाता है। इस वाद्य यंत्र को छड़ियों और दाएँ हाथ की उँगलियों से बजाया जाता है। इस वाद्य यंत्र को असम के पारंपरिक और लोक शैलियों, विशेष रूप से बिहू उत्सव, में उपयोग किया जाता है। इसे 'बिहू ढोल' भी कहा जाता है।
Material: पीतल, चर्मपत्र, कपास
हिंदू धर्म के आगमन के बाद, वैष्णववाद मणिपुरियों के लिए जीवन का एक तरीका बन गया। फलस्वरूप, संकीर्तन या संगीत और नृत्य के माध्यम से भगवान कृष्ण और राधा की पूजा, भक्ति रस की सबसे शक्तिशाली अभिव्यक्ति बन गई। भक्ति गीतों और नृत्यों की यह वैष्णव परंपरा भगवान कृष्ण को भेंट के रूप में प्रस्तुत की जाती है। संकीर्तन अब मणिपुरी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है इसे सभी महत्वपूर्ण अवसरों और त्योहारों पर प्रस्तुत किया जाता है। ढोल एक बड़ा ड्रम है जो संकीर्तन परंपरा के गायन और नृत्य का संगत होता है। याओशांग त्योहार में ढोल का परस्पर वादन विशिष्ट रूप से देखा जाता है जिसे मणिपुर में रंगों का त्योहार के नाम से जाना जाता है। इस त्योहार के दौरान लोग उन्मुक्त हर्षोल्लास के साथ ढोल बजाते हैं। ढोल चोलोम या ढोल बजाने को एक नरम फुसफुसाहट से गर्जनकारी उत्कर्ष तक ध्वनि के उतार चढ़ाव के द्वारा विशिष्ट बनाया जाता है