Type: अवनद्ध वाद्य
नागर काँसे और चर्मपत्र से निर्मित एक ताल वाद्य यंत्र है। यह हिमाचल प्रदेश में पाया जाने वाला एक लोक वाद्य यंत्र है। मुख्य रूप से समूह नृत्य और सामाजिक उत्सवों इत्यादि में उपयोग किया जाता है।
Material: धातु, चमड़ा
एक साथ जुड़े, पशु चर्म से ढके हुए लोहे की पट्टियों के टुकड़ों से निर्मित एकमुखी पात्र। इसे लकड़ी की दो छड़ियों से बजाया जाता है। मध्य प्रदेश की 'हो' जनजातियों द्वारा उपयोग किया जाता है।
Material: धातु, चमड़ा
यह ढोल की एक जोड़ी है। धातु के दो गोलार्ध कटोरे से मिलकर बनी होती है। मोटा चर्मपत्र, चमड़े की पट्टियों द्वारा फैला हुआ होता है। दोनों असमान आकार के होते हैं, एक ऊंची तान वाला छोटा और एक नीची तान का बड़ा वाला। इन्हें या तो ज़मीन पर रखा जाता है या फिर कमर पर बांधा जाता है। डंडियों से इसे एक साथ बजाया जाता है। उत्सव के अवसरों पर 'शहनाई' के साथ संगत में प्रयुक्त होता है।
Material: लोहा, चमड़ा, लकड़ी
कीलों से जुड़ी लोहे की पट्टियों से बना एक बड़ा, गहरा अर्धगोलाकर पात्र। बड़ा मुख भैंस की खाल से ढका होता है और नीचे एक कुंडा और छिद्रों के जरिए एक चमड़े की रस्सी द्वारा किनारे से बँधा होता है। लकड़ी की दो छड़ियों से बजाया जाता है। सरायकेला छऊ नृत्य में उपयोग किया जाता है।
Material: लकड़ी ,धातु
केरल में कुछ शोभायात्रओं का नेतृत्व करने के लिए इसे एक गाड़ी में ले जाया जाता है। इसका उपयोग शाही महलों के द्वार पर शाही गीत के रूप में भोर और सूर्यास्त के समय (कोचीन रॉयल पैलेस त्रिओनितुरा में) किया जाता था।
Material: लकड़ी
नगाड़ा पुराने नौबत (नौ संगीत वाद्य यंत्रों का पारंपरिक सामूहिक प्रदर्शन) के केतलीनुमा ढोल होते हैं, जो लगभग एक से दो फ़ीट व्यास के होते हैं और छड़ियों से बजाए जाते हैं। आजकल, यह पारंपरिक वाद्य यंत्र प्रायः लय के लिए शहनाई के साथ संगत के लिए उपयोग किया जाता है।